आज भोर एक अजीब वाकया हुआ I मेरे छप्पर से ज़ोर - ज़ोर से छाती पीटने की आवाज़ें आ रहीं थीं I मैं ग़ूनूदगी की हालत में अलार्म घडी के बजने का इंतज़ार कर रहा था I उन आवाज़ों ने मेरी बचीखुची नींद - जो ऊँघ की शक्ल में तब्दील ही हुई थी - भी छीन ली I मैं खीज से भर गया था I नींद जब पूरी खुली तो मालूम हुआ बारिश आयी थी I बारिश रो रही थी I यह मेरी नौकरी पकड़ने के बाद पहली बारिश थी I एक दौर था जब मैं इन आवाज़ों से भोर के वक़्त काफ़ी सुकून महसूस किया करता था I लेकिन इस बार ऐसा कुछ हुआ नहीं I मुझे ऑफिस में नौ घंटे दिलचस्पी से काम करना था I इसके लिए मुझे कम से कम छह घंटे सोना था I लेकिन बारिश ने तो मुझे पूरे दो घंटे पहले उठा दिया था I
मैंने डपट के बोला - 'कहीं और चली जा, दो घंटो में मुझे उठना है I'
बारिश और भी रो पड़ी और रोते रोते बोली - 'मेरी एक बूँद खो गयी है, मिल नहीं रही है, आपने देखी है I'
'जा देख ले, कहीं होगी किसी पेड़ - पौधे के पास, या किसी आवारा कुत्ते के कान पे बैठी होगी I'
'भाग जा यहाँ से, बेवक़ूफ़! एक बूँद के लिए रोती है I'
बारिश रोती रही और रोते - रोते उसने ज़मीन को निगल लिया I फटकार लगाने के बाद मैं भी औन्धे मुँह सो गया I थोड़ी देर बाद नींद टूटी I बारिश का बिलखना, किसी का ज़ोर - ज़ोर से किसी का दरवाज़ा पीटना और अलार्म क्लॉक की उलझन पैदा करने वाली मशीनी आवाज़ - इन तीनों ने मिलकर मेरी नींद के परखच्चे उड़ा दिए थे I मैं बिस्तर से उठ कर खड़ा हुआ और चप्पल को पैर में डालते हुए देखा कि एक बूँद मेरे 'कमरे' की फ़र्श पे पड़ी थी I मैने उसे उठाया और खिड़की से बाहर फेंक दिया और रोज़ की तरह तैयार होकर ऑफिस निकल गया I बारिश भी तब तक थम चुकी थी I