सुना है अब तुम ऑफिस से
घर पैदल नहीं जाते।
क्या उन राहों पे
अब कोई नहीं चलता ?
क्या वहाँ ज़मीन पे
गिरी बारिश बस सूखती है ?
उनपे अब जूतों के निशान नहीं होते ?
क्या अब तुम्हारे जूतों पे
रास्ते की मिट्टी नहीं होती ?
कल पुराने सामान की गठरी में से
वो जूता कूद पड़ा,
जिसको पहन मैं ऑफिस
से आखिरी रोज़ घर लौटा था।
उस रोज़ जो बारिश हुयी थी
उसके सूखे कीचड़ लगे थे,
धूल सी सूखी मिट्टी लगी थी।
सब कुछ सूख सा गया था,
फिर यह आँखें क्यूँ गीली हो गयीं ?
घर पैदल नहीं जाते।
क्या उन राहों पे
अब कोई नहीं चलता ?
क्या वहाँ ज़मीन पे
गिरी बारिश बस सूखती है ?
उनपे अब जूतों के निशान नहीं होते ?
क्या अब तुम्हारे जूतों पे
रास्ते की मिट्टी नहीं होती ?
कल पुराने सामान की गठरी में से
वो जूता कूद पड़ा,
जिसको पहन मैं ऑफिस
से आखिरी रोज़ घर लौटा था।
उस रोज़ जो बारिश हुयी थी
उसके सूखे कीचड़ लगे थे,
धूल सी सूखी मिट्टी लगी थी।
सब कुछ सूख सा गया था,
फिर यह आँखें क्यूँ गीली हो गयीं ?