Tuesday, February 26, 2019

बारिश

कहीं किसी का दिल तड़पा है
जो बादल खिड़की पे आ गरजा है

छुपके आँसू बहाता है कोई
आसमाँ जो इस कदर बरसा है

कोई तन्हा ज़रूर है कहीं
जो बारिश में परिंदा उसे ढूंढता उड़ता है

विरह की आग में जलता है कोई शायद
बारिश का पानी इसलिए कितना ठंडा है

जिनसे कोई बात करने वाला नहीं है
सुनो! उनसे बारिश का पानी क्या कहता है

                                                  - ताबिश नवाज़ 

Sunday, February 24, 2019

ख़ून झलकता है जहाँ आँखों में
वहाँ नज़र साफ़ नहीं होती

इंसाफ़ जहाँ क़ीमती हो
वहाँ बरसात नहीं होती

पानी तो बरसता है, लोग मिलते भी हैं
पर मुलाक़ात नहीं होती

रौशनी से रौशनी मिल जाये तो क्या
अँधेरे की वफ़ात नहीं होती

बुझा दो आज चराग़ों को
अब वहाँ तेरी बात नहीं होती

जम जाओ मेरे लफ़्ज़ों
तुमसे अब वो बात नहीं होती

तुम पथ्थर बन जाओ, बरस पड़ो ज़माने पे
जहाँ रिश्तों में जज़्बात नहीं होते

'शजर' तु आज हँसता भी है और रोता भी, कुछ तो है,
वर्ना यह कैफ़ियत एक साथ नहीं होती

                                           - ताबिश नवाज़ 'शजर'

[वफ़ात = मौत; कैफ़ियत = हालत]

Wednesday, February 6, 2019

दिन

ठंडा और उदास दिन
बेचैन, बदहवास दिन।

बादलों से ढका हुआ
मैला सा लिबास दिन।

रोज़ाना घर से निकलता
यहीं कहीं आस-पास दिन।

दिल को मारता, पेट के लिए
करता दिनभर बकवास दिन।

शाम को आता, दरवाज़ा खोलता
लिए कल की आस दिन।

रात होते होते
कलम में भरता मिठास दिन।

उम्मीद से कहता
कल है तुम्हारे पास दिन।

नींद आ जाती, भले न आये
उस रोज़ रास दिन।