दर्द को जो ज़बाँ मिले
इस वजूद को नामो - निशाँ मिले
जिन बातों में चमकती हो उदासी
उस चमक से रौशन जहाँ मिले
और जब आँहों से उठने लगे सदा सी
उन सदाओं को ग़ज़ल से बयाँ मिले
तर तन्हा करते हैं जो दिल की सुर्ख़ मिट्टी
उनके आँसुओं को तर आँखों का मकाँ मिले
तमन्ना नहीं कि सुख़नवर कहलाऊँ
लिख लेता हूँ 'शजर' जो दो वक़्त तन्हा मिले
- ताबिश नवाज़ 'शजर'
इस वजूद को नामो - निशाँ मिले
जिन बातों में चमकती हो उदासी
उस चमक से रौशन जहाँ मिले
और जब आँहों से उठने लगे सदा सी
उन सदाओं को ग़ज़ल से बयाँ मिले
तर तन्हा करते हैं जो दिल की सुर्ख़ मिट्टी
उनके आँसुओं को तर आँखों का मकाँ मिले
तमन्ना नहीं कि सुख़नवर कहलाऊँ
लिख लेता हूँ 'शजर' जो दो वक़्त तन्हा मिले
- ताबिश नवाज़ 'शजर'