Sunday, February 23, 2014

सुसाइड नोट

वो मृत्युशय्या पे लेटा, सुसाइड नोट लिखने की कोशिश कर रहा है। हालाँकि वो एक नैचुरल डेथ ही मर रहा है। पर उसे लगता है सुसाइड कर रहा है।

उसमें सुसाइड करने की प्रवृति अरसों से थी। परफेक्ट सुसाइड नोट न लिख पाने की वजह से वो उसे हमेशा टालता रहा है।

 ऐसा नहीं है कि उसे किसी को कुछ कहना या बताना है। और यह भी नहीं है कि उसके सुसाइड नोट को कोई बहुत उत्सुकता से पढ़ेगा। उसका सुसाइड नोट साहित्यिक धरोहर होगा - यह भी नहीं है।

सुसाइड नोट तो उसे सिर्फ़ इसलिए लिखना है क्यूंकि, जिस समाज में वो रहता है, वहाँ ऐसा करते हैं।

उसने अपनी सारी ज़िन्दगी प्रीवेलिंग सोशल और इकनोमिक कल्चर के मुताबिक ही बिताई है।फिर जाने वक़्त नॉर्म तोड़ना उसे ठीक नहीं लगता है। उसकी ज़िन्दगी के अहम् फैसले सामाजिक दबाव में ही किये गयें हैं।

अगर आप ज़्यादा कल्पनाशील हैं तो उसकी ज़िन्दगी को चाबियों के एक गुच्छे की शक्ल में भी देख सकते हैं। जिसमें विभिन्न चाबियाँ विभिन्न आयुकाल को दर्शाती हैं। और जिसपे समाज नाम के दुकान की मुहर लगी हुयी है। उन चाबियों से अलग-अलग दरवाज़े खुलते हैं जिनपे बड़े-बड़े अक्षरों में पढाई, नौकरी, शादी, बच्चा इत्यादि लिखे हुए हैं।यह गुच्छा बचपन में ही उसके गर्दन में लटका दिया गया था। उसके गुच्छे में कुछ एक चाबियाँ ऐसी भी थीं जिसपे किसी दरवाज़े का पता नहीं था। उनपे कुछ लिखा हुआ नहीं था। इन चाबियों की अर्थहीनता ने उसे कई रातों तक परेशान किया था। सामाजिक दुकानों पे भी जाके उसने इन चाबियों के सन्दर्भ में सवाल पूछे थे। समाज के दुकानदार उन्हे महज़ ख़राब कारीगरी मानते थे। 'एन एब्रेशन' कहके टाला था एक दुकानदार ने जिसकी चाबियाँ उसके समय की सबसे कारगर चाबियाँ मानी जाती थीं।

उन्ही दौरान किसी रात के पहर में उसने सुसाइड का मन बनाया था। पहली बार उसने अपने किसी काम में मर्ज़ी दिखायी थी। पर यहाँ भी सुसाइड नोट लिखने का सामाजिक चलन आड़े आता रहा।

उसने कभी किसी को यह नहीं बताया कि वो सुसाइड करना चाहता है। हाँ, पर वो आधे-अधूरे सुसाइड नोट्स एकाध मर्तवा, लोगों को पढ़ने के लिए दे देता था। कुछ एक लोग उनको पढ़ के अपने मार्मिक होने का प्रमाण भी देते थे।

कुछ महीने पहले ही उसने अपनी ज़िन्दगी के उस पल के बारे में लिखा था, जब उसकी सुसाइडल टेंडेंसिज़ न्यूनतम पे थी। उसने किसी से मिलने और बिछड़ने का ज़िक्र किया था। लोगों ने पढ़ा, पर किसी ने यह नहीं पूछा कि तुम बिछड़े कैसे या फिर तुम मिले ही क्यूँ थे ?

उसे लगने लगा था कि मिलना और बिछड़ जाना इस कल्चर में मान्य है। दो लोगों का साथ वक़्त गुज़ारना और फिर, सुविधा के आधार पर अलग हो जाना एक नॉर्मल बात है। उसे यह भी लगने लगा था कि एक ख़ास उम्र में कुछ लोगों से मिलना भी सामाजिक प्रक्रिया का हिस्सा है। शायद ऐसे ही कुछ रिश्ते होंगे जिसके लिए समाज ने बिना दरवाज़े की चाबियाँ बनायीं हैं। ऐसी चाबियाँ जिनपे कुछ नहीं लिखा हुआ है, ऐसे रिश्ते जिनका कोई नाम नहीं है। ऐसी चाबियाँ जो गुच्छे से लटक के ज़िन्दगी में खनक पैदा करती हैं। जिनकी वजह से गुच्छा वज़नदार और भरा-भरा मालूम होता है। जिनके बिना गुच्छा बस चाबियों का समूह मात्र रह जाता है।

ऐसा उसने अपने पिछले नोट में लिखा था। सुसाइड करके वो सामाजिक चलन से विद्रोह करना चाहता है। पर वो उसे भी सामाजिक ढंग से करना चाहता है। जाते-जाते वो समाज के किसी नियम का उल्लंघन नहीं करना चाहता है। कम से कम वो उन चाबियों को ख़ारिज नहीं करना चाहता जिसपे कुछ ऐसे पते दर्ज हैं जो इंसानी ज़िन्दगी को ऐसी जगह ले जाते हैं जहाँ आदमी वर्तमान में रह लेता है। 'एक्सिस्टेन्स बियॉन्ड रिग्रेट एंड होप' नाम के एक निबंध में उसने इन सब बातों का ज़िक्र किया है।

एक उदाहरण और देता हूँ जिससे पता चलेगा कि वो सामाजिक दायरों, मापदंडो को कितना मानता है।

सुसाइड वाले दौर से पहले वो समाज को न जाने किससे बचाने की बातें किया करता था। लेकिन एक बार उससे दोस्तोएव्स्की ने यह बोल दिया कि - 'ओनली ब्यूटी विल सेव दी वर्ल्ड'। यह बात उसे चुभ गयी। क्यूंकि जन्म के ही वक़्त समाज ने उसे बदसूरत, कुरूप ठहरा दिया था। उसके इस इरादे पे भी समाज ने पहले ही मोहर लगा दी थी। मुझे लगता है उसी के बाद वो सुसाइड की स्कीम बनाने लगा। सुसाइड कि चर्चा उसने एक बार कामू से की थी। लेकिन सुसाइड नोट के बारे में उसने कामू साहब को कुछ नहीं बताया था।

अब थोड़ी देर में इसका लाइफ सपोर्ट हटा लिया जायेगा। इसके गुच्छे की वो चाबी भी लोग टटोल रहे हैं जिसपे इसका मज़हब और कब्रस्तान का पता लिखा है। कल यह दो तारीखों के बीच में समा दिया जायेगा।

कल शोक सभा भी आयोजित होगी। लोग अपने गले में चाबियों के गुच्छे लटकाये आयेंगे। सारा माहौल इन चाबियों की इकठ्ठी खनखनाहट से भर जायेगा। सबके गले में वो बेनाम चाबियाँ भी खनखनायेंगी जिनका शोर ऐसे मौके पे सबको परेशान करता है। जिसको सामान्यतः सामाजिक शोर दबा देती है - शोर जो निरंतर, निरर्थक, अपरिमित है।

इन सारे शोर के मध्य में एक मधुर गीत जीवन का भी होगा, जो कर्कश निरर्थक सुसाइडल टेंडेंसीज पर ताउम्र हावी रहा होगा।   

2 comments:

  1. Your blog is very nuanced and thought provoking. Keep the mad mumblings coming, if only for insane like us.

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    1. Thanks for kind and encouraging words Sumi. Glad that you liked it :)

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