Saturday, March 30, 2019

एक नज़्म

जब तलक तु रहा
दुनिया मुत्तासिर रही हमसे
हमें छूकर कसमें भी खाये गए
फिर जबसे तेरे साये गए
मत पूछ कितने ज़ुल्मों-सितम ढाये गए
क्या-ग़ुज़री जब बयाँ किया
तो झुटलाये गए
हम-दर्दी बस इतनी मिली
कि तक़लीफ़ मर्ज़-ए-फ़ितूर कहलाये गए।

ज़बाँ हमारी कान को तरसती थी
घटा उठती थी आँखों से बरसती थी
काई जमीं इन आँखों में
पर पोंछनें वाला कोई न था
ठिठुरते थे बारिश में हम
ओढ़ने को दुशाला कोई न था।

तेरे आमद की अब हम नज़्में गाते हैं
मन नहीं लोगों को बहलाते हैं
लौट आ
कि अब चमन में जगह तो नहीं
हम सड़कों पे ही खिल लेंगे
आ जा की नींद अब भी थोड़ी बाकी है
होश में न सही, हम ख़्वाबों में ही मिल लेंगे
आ जा ज़ख़्म हरा-भरा है अब तक
बग़ीचे न सही, फूल हमारे यहीं खिल लेंगे।
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                                                ताबिश



Tuesday, March 19, 2019

चाँद

चाँद सर-ए-आसमाँ जलता रहा
हमसफ़र बना, साथ चलता रहा

क़िस्से-कहानियाँ हमें सुनाता गया
स्याह रात में रौशनी, माथे पे मलता रहा

हम भी टकटकी लगाए उसे देखा किये
चाँद भी हमें रात भर तकता रहा

रास्ते पे चलते जब ठोकर लगी
उसे देखकर क़दम संभलता रहा

मंज़िल थी क्या, बस एक 'शजर' की छाँव
जिसकी शाख़ें हिलती रहीं, चाँद जिनमें मचलता रहा 



Monday, March 18, 2019

मन्नतें तो करते हैं ख़ुदा से बहुत मगर

मन्नतें तो करते हैं ख़ुदा से बहुत मगर
किसी से कोई फ़रियाद नहीं है

तंग हाथों से लुटाया हमने
देकर भूल गए, उन्हें लेकर याद नहीं है

कमाई कुछ ऐसे बचाते हैं हम
किताबें हैं  जायदाद नहीं है

तरबियत कुछ ऐसी मिली उससे
उसके ग़ुज़रने पे भी हद से आज़ाद नहीं हैं

'शजर' से पूछ लेना खड़े होने का राज़
गर मकाँ ऊँचा है और गहरी बुनियाद नहीं है

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                                                   ताबिश नवाज़ 'शजर'
[तरबियत = Teaching, Upbringing]

Thursday, March 14, 2019

सलाह

जलो कि प्रकाश हो
ह्रदय विस्तृत जैसे आकाश हो। 

लोगों से मिलो ऐसे कि जब न मिलो, 
तो तुम्हारी तलाश हो। 

पथ्थरों संग गर जीना पड़े 
तो जियो ऐसे कि कोई संगतराश हो। 

लफ़्ज़ साथ दें गर तो ही कुछ कहना 'शजर'
तुम ख़ामोशी से बात करने के नक्काश हो।

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                                               ताबिश नवाज़ 'शजर'

[संगतराश = Sculptor, संग = stone, तराश = to polish, to shape]
[नक्काश = Artist]



Saturday, March 9, 2019

दुआ

हर ज़बाँ को कान का सहारा मिले
कोई दोस्त मिले, कोई प्यारा मिले

हँसने में जो रो लेते हैं
दर्द बयाँ करने का उन्हे कुछ ईशारा मिले

नन्हे सपने समंदर में जब डूबते हों
कम-से-कम पानी न उन्हें खारा मिले

सरगोशी शोर बन जाये
ऐसा एक स्वर हमारा मिले

ज़ुल्म मिट जाये जहाँ से
उसके ख़िलाफ़ एक ऐसा नारा मिले

नफ़रत बाँट न सके
हमें मोहब्बत से जोड़ती एक ऐसी धारा मिले

क़ैद न रह जाएं महज़ काग़ज़ों में
कविताओं को चौक-चौराहों पे ग़ुज़ारा मिले

------------------------------ताबिश नवाज़




Wednesday, March 6, 2019

ऐसा वक़्त सुनहरा होगा

सुबह आएगी, सवेरा होगा
मंज़िलें मिलेंगीं, बसेरा होगा

सत्य आज़ाद होगा
सपनों पे ना कोई पहरा होगा

ख़ुदा, कानून से सब बेपरवाह होंगे
पर यक़ीं सभी को दिल में गहरा होगा

हवाओं से बेख़ौफ़ जलेंगें चराग़
उनके बुझने से न कभी अँधेरा होगा

ऐसी आबाद होगी रौशनी
ऐसा वक़्त सुनहरा होगा।

                --- ताबिश नवाज़