Wednesday, January 30, 2019

इतिहास

इतिहास समय की आत्मा है।
इतिहास का रचयिता 
समय का शरीर।

बाकी सब समय के पुर्ज़े हैं
हिलते-डुलते रहते हैं
अपनी - अपनी दुनिया में

वो अक्सर पीछे छूट जाते हैं
जो चाहते हैं
समय से कदम मिलाकर चलें।

समय चोट देकर
आगे बढ़ जाता है
चुपचाप।
फिर भटकते रहते हैं
खोये समय की तलाश में।

इनकी चोट, इनका दर्द, इनकी नाक़ामियाँ
समय का ईंधन हैं
समय इनमें जलता है
निरंतर चलता है
खोजता है शरीर वो
समा सके जिनमें
ज़माने की उम्मीद वो

और जब....  समय
अपनी आत्मीयता पा लेता है
वो छण ऐतिहासिक हो जाता है। 

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