Sunday, June 30, 2019

मिथक

छूटते दोस्त
और छूटता जाता एक शहर
समय की धारा  पर
बहती ख़्वाहिशें
कुछ डूब जातीं
कुछ उभर आतीं
जो डूब जातीं उनसे
समय का घनत्व बना रहता
जो उभर आतीं उनसे
समय की गति।

बिछड़ते हुए बोली गयी बात
शब्द और आंसू का मिश्रण
कुछ बड़बड़ाहट, कुछ बेचैनी
सारे स्याह धब्बे
बैठे हुए चुपचाप
ख़ामोशी की सतह पर
बेमानी, बेमतलब
हमारे लफ़्ज़ कोरी वास्तविक्ता पर
मिथक।

जीवन यूँही मृत्यु की पीठ पे मचलता
समय की सतह पर संभलता
तैरते जाता,
एक शहर से दूसरे शहर
मिलता लोगों से
जैसे जल पे तेल
चमकता, सतरंगे जैसा दिखता
पर होता मिथक।









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