Monday, March 18, 2019

मन्नतें तो करते हैं ख़ुदा से बहुत मगर

मन्नतें तो करते हैं ख़ुदा से बहुत मगर
किसी से कोई फ़रियाद नहीं है

तंग हाथों से लुटाया हमने
देकर भूल गए, उन्हें लेकर याद नहीं है

कमाई कुछ ऐसे बचाते हैं हम
किताबें हैं  जायदाद नहीं है

तरबियत कुछ ऐसी मिली उससे
उसके ग़ुज़रने पे भी हद से आज़ाद नहीं हैं

'शजर' से पूछ लेना खड़े होने का राज़
गर मकाँ ऊँचा है और गहरी बुनियाद नहीं है

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                                                   ताबिश नवाज़ 'शजर'
[तरबियत = Teaching, Upbringing]

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