Tuesday, April 2, 2019

एक मधुमक्खी मेरे घर में फँसी है

एक मधुमक्खी मेरे घर में फँसी है
भिनभिनाती, उड़ती जाती 
जैसे कुछ खोज रही है 
मैं दरवाज़े, खिड़कियाँ खोल देता हूँ 
यह निकल जाएगी, सोचता हूँ 
पर यह ऐसा करती नहीं है 
यह खुली खिड़की, दरवाज़े के पास आती 
फिर तेज़ी से पलट जाती  
किसी बात की इसे शिकायत है शायद 
लगता किसी को ढूंढ रही है 
एक मधुमक्खी मेरे घर में फँसी है 

वीकेंड्स पे मैं भी घर पे होता हूँ 
घर की चारदीवारी में बंद 
मैं भी बाहर निकलने का रास्ता टटोलता हूँ 
पर मैं भी जिसे ढूंढ रहा हूँ 
वो दरवाज़े के बाहर शायद नहीं है 
इसलिए मैं भी घर से निकल नहीं पाता 
दिन भर अंदर मंडराता 
कमरे से बालकोनी, सोफ़े से बिस्तर 
मानो मैं भी मधुमक्खी हूँ बन जाता 

मैं फिर भी उसे बाहर निकालने की कोशिश हूँ करता 
लेकिन जब वो नहीं निकलती तो थोड़ा अच्छा है लगता 
खिड़की मैं खोलता, पर मन ही मन हूँ मनाता 
कि वो न निकले
और यह खेल यूँही चलता रहे 
वीकेंड्स पे मन बहलता रहे 

दरअसल जो मेरे सीने में धड़कता है 
वो इसी मधुमक्खी का छत्ता है 
इसी से मिठास है थोड़ी 
इसी की खुशबू साँसों में बसी है 
एक मधुमक्खी मेरे घर में फँसी है

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                                         ताबिश नवाज़