Saturday, June 30, 2018

आज

बेनूर     आज        शहर        लगता     है
चाँद     आज      दर-ब-दर     लगता    है

शमा      अँधेरे        में         लिपटी      है
चिराग़    आज      बेअसर     लगता     है

सीने   की   आग   आँखों   में   जलती   है
दो बूँद पानी आज उनमें समंदर लगता है

मय   में   मिला    दी      ज़िन्दगी    उसने
कितना   मीठा   ये   आज ज़हर लगता है

बैठे  हैं  काटकर   तुझे,  तेरे  ही  साये  में
कितना  मासूम  तू आज 'शजर' लगता है


[दर-ब-दर = Displaced, Wandering; मय = Intoxicant; शजर = Tree]


Monday, June 25, 2018

तपस्या

एक   गर्म    रात     तन्हा
कोई   फूँकता   है  पिन्हा
झोँका    ठंडी   हवा   का

                              छूते ही जिसके

चिराग़ की लौ लड़खड़ाई
ग़ूनूदगी तारी  हुयी उसपे
और   नींद     आ   गयी।

जो बुझ गया बाहर, वो अंदर प्रज्वलित हो गया।
करके  तप   तमस   में,   मन  विदित  हो  गया।

[पिन्हा = Concealed, Hidden; ग़ूनूदगी = Sleepiness;  तमस = Darkness; विदित = Sage]

                                               


Sunday, June 24, 2018

बादल

जिन बादलों ने कल तलक
अपनी आवाजाही से
सूरज को नज़रबंद किया था
और आसमान को रंगा था
काला, सफ़ेद और वो सबकुछ
जो रौशनी और अँधेरे,
कुछ लेन - देन कर,
सतहों के इर्द - गिर्द बनाते हैं

वो बादल, इतने गहरे
गर बरसे तो बारिश
उनमें फँस जाये।
इतने ठोस
गर गिरे तो दरख़्त
कील की तरह
धरा में धँस जाये।

आज वही बादल
छितरे पड़े हैं
पॉवरोटी के पतले टुकड़ों की तरह
मानो उँगलियों से उन्हें
किसी ने गींज दिया है।

सूरज की रौशनी उन्हें भिगो रही है
और वो घुलते जा रहे हैं
आसमान में लुप्त होते जा रहे हैं।

Saturday, June 23, 2018

रहमत

चले चिराग़ की चाह में हम, रौशनी का ज़ख़ीरा मिल  गया
राह   के   पत्थर    चुनते - चुनते,   हमें   हीरा  मिल  गया।

हासिल     किये      मुक़ाम     हर      कदम      पे     हम
जो      तेरी      उँगलियों      का     गीराह    मिल    गया।

मिठास          फैल             गयी             हर       तरफ़
मासूम  किलकारियों  से   हवा   में    शीरा   मिल  गया।

अब   तुझे    और    कितनी    रहमत     चाहिए   'शजर'
समन्दर   में    उगने    को    तुझे   जज़ीरा   मिल  गया।

                                       
[ज़ख़ीरा: Collection, Store; शीरा: Sweet; शजर: Tree; जज़ीरा: Island]

Friday, June 22, 2018

नज़र

घड़ी की सुई पे 
फिसलता वक़्त 
सिमटी हुयी रौशनी 
कलम की परछाईं 
काग़ज़ को काला 
करती हुयी 
रात 
मोहब्बत 
के पीठ तले 
छिपी हुयी 
तन्हाई 
समय का समंदर
स्मृति की धाराएं 
इतिहास का दलदल 
धंसता हुआ 
आदमी 
डूबता हुआ देश
उगता हुआ अँधेरा 
ऊँघते सितारे 
फटी हुयी 
आँखें
सपने 
चूते हुए से 
थकी हुयी 
आत्मा 
टूटा हुआ 
शरीर 
भाड़े का दिन 
किराए की 
रात 
चुराए हुए 
सपने 
चलती हुयी घड़ी 
रुका हुआ वक़्त 
आँखों से नींद के चले जाने से
क्या-क्या दिखाई देता है 

Sunday, June 17, 2018

अंदर-बाहर


रबर की रूह से 
लिपटे जलन की 
आग में सुलगता 
सीने में धड़कता 
कार्बन का एक 
ढेला। 
नसों में धकेलता 
धुआं 
आँखों से टपकती 
रात 
झड़ते बाल, बंजर 
कपार से, सूखे 
पत्तों की आवाज़ 
चिड़ियों का घोंसला 
बादल में 
सल्फर की सनसनाहट 
नोचे हुए मुँह पे 
स्याह खरोंच 
ठूंठ जैसे पेड़ 
घोंपे हुए 
धरती में 
घाँस झाँट जैसे 
रेत में 
कैक्टस का पौधा 
कठोर, कँटीला, हरा 
अंदर नमी से भरा।