Monday, November 4, 2013

कैसे

भरे पेट से कविता
कैसे लिखी जाती है?
ढका बदन अफ़साना
कैसे बुनता है ?

कोई कैसे कोलाहल में
तपस्या करता है ?
कैसे ?
कैसे?

रज़ाई में लेट के
चेतना गर्म होती है क्या?
फिर कोई कैसे
इतने आराम से सोता है ?

कैसे समय से
ऊठ के काम पे जाता है
कैसे समय पे
पेट भरता है?

कैसे फ़ुर्सत में
बैठ कर
कविता और किस्सा लिखता है?
कैसे? आख़िर कैसे?

क्या मनुष्य की
सृजन शक्ति इतनी असीम है
कि वो घी में चुपड़ी रोटी खाते हुए भी
एक ग़रीब की अनन्त भूख की कल्पना कर ले?

क्या मनुष्य की
सृजन शक्ति इतनी व्यापक है
कि वो एक ऐसे भाई के बेबसी का अनुभव कर ले
जो अपनी छोटी बहन को स्नेह से किराने कीं दुकान पे लेकर जाता है
मगर दुकानदार से इशारों में
गुज़ारिश करता है
कि वो यह बोले कि
यह टॉफियां नहीं बल्कि दवाईआं हैं?

क्या मनुष्य की
सृजन शक्ति इतनी समर्थ है
कि उस माँ के शरीर का ताप माप सके
जो फीवर की हालत में
सड़क पे रोड़े बिछाती है
और दिहाड़ी मिलने पे
घंटो यह तय नहीं कर पाती
कि वो रोटी ख़रीदे या दवा ?

तो फिर कोई कैसे
वाइन का प्याला मेज़ पे रख के,
कान पे मफलर लपेट के
वातानकूलित कमरे में बैठ के
किस्से-कहानियाँ लिखता है?

आख़िर कैसे? मैं पूछता हूँ कैसे?

3 comments:

  1. Was reading Camus' Nobel Acceptance Speech and came across something that is relevant here:
    "But the silence of an unknown prisoner, abandoned to humiliations at the other end of the world, is enough to draw the writer out of his exile, at least whenever, in the midst of the privileges of freedom, he manages not to forget that silence, and to transmit it in order to make it resound by means of his art."

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  2. I read that piece sometime back, you should also read the Nobel lectures by Aleksandr Solzenitsyn and he has reiterated the same point and even made reference of Camus's speech. I would suggest you to read it, it is in form of a book.
    http://www.nobelprize.org/nobel_prizes/literature/laureates/1970/solzhenitsyn-lecture.html
    this is the complete lecture, though I read it in a 38 page book.
    The earlier comment i deleted because of some error in the link. I am reposting it.

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