कल भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच हुआ था। हालांकि नतीजा नागवार रहा पर सामान्य जन-जीवन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। मेरे मामा-चाचा कहते हैं कि एक दौर था जब भारत-पाकिस्तान के मैच में दो गुटों, मोहल्लों, दोस्तों और अक्सर तो एक ही घर के सदस्यों में तना तनी हो जाती थी-एक वाकया तो बाप का बेटे को घर से निकालने का भी है। वतनपरस्ती और गद्दारी के हवाले भी दिए जाते थे।
उस ज़माने में ज़्यादा एलेक्ट्रोनिक्स गैजेट्स तो थे नहीं, इसलिए जो भी एकाध टीवी सेट्स होते थे वो चौक-चौराहे की शोभा बढाते थे। इस बहाने लोगों का मिलना भी हो जाता था। पटाखों वालों की तो मौज होती थी। हो भी क्यूं ना, कम्मेंट्री जो इनकी भाषा में होती थी।चौके के लिए अलग आवाज़ का पटाखा, छक्के का थोड़ा तेज़ और विकेट गिरने पे रॉकेट का गिनगिनाना। गली चौराहे पे जब आदमियों की इतनी भीड़ हो तो भला कुत्ते कहाँ चुप बैठने वाले, वो भी भौंकते रहते थे। और, कभी कभी तो कुत्तों में लड़ाई भी हो जाती थी। पर ऐसा तो कुछ भी नहीं दिखा मुझे। शायद लोगों के पास अब इतना वक़्त नहीं है कि दूसरों की पसंद-नापसंद जानें, या फिर गैजेट्स वगैरह इतनी प्रचुर संख्या में लोगों के पास उपलब्ध है कि सबको एक साथ सड़क चौराहे पे इकठ्ठा कर दें तो आदमी कम और सामान ज़्यादा हो जायेंगे, झूठमूठ की परेशानी हो जाएगी। और तो और, सब इतने महंगे दामों में खरीदे गयें हैं कि उनका इस्तेमाल करना भी ज़रूरी है-पैसा है वक़्त नहीं-इसलिए जो भी वक़्त मिलता है आदमी पैसे से खरीदी हुई चीज़ों पे बिताना पसंद करता है। या फिर यह भी हो सकता है कि लोग अब पहले के अपेक्छा ज़्यादा लिबरल और टॉलरेंट हो गयें हैं? और, इन सब मामलों में ज़्यादा प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करना चाहते हैं। लोग ज़्यादा देशभक्त हो गयें हों, यह भी एक संभव कारण हो सकता है या फिर लोग अब क्रिकेट को देशभक्ति से ज़्यादा जोड़ते हों? हो यह भी सकता है कि कुछ लोग डर रहें हों, दूसरों की भावना का ख़्याल कर रहें हों, अपने दिल की बात जुबां पे नहीं ला पा रहें हों?
सवाल ही सवाल थे। मैं इसी मानसिक उधेड़बून में उलझा हुआ अपनी क्लास में दाखिल हुआ। वहां मैच की ही चर्चा हो रही थी। समीर मुझे आता देख बोला "और, कल तो तुम बहूत खुश हो गए होगे। " अपने आप ही मेरी सवालों की गठरी से एक सवाल निकल गया "क्यूं?" "जीत गयी तुम लोगो की टीम "-समीर ने जवाब दिया। अमर और विजय ने समीर की इस टिपण्णी पे खिंचाई कर दी। मैं कुछ नहीं बोला और पानी पीने बाहर निकल गया। रास्ते में मेरा दूसरा सहपाठी समिर मिला। मुझे कोने में लेते हुए बोला-"भाई कल मैच देखा?" मैने हामी भरी। "मज़ा आ गया भाई, मल्लिक भाई ने मचा दिया । "
मैं फिर चुप रहा, क्या बोलता मैं?
उस ज़माने में ज़्यादा एलेक्ट्रोनिक्स गैजेट्स तो थे नहीं, इसलिए जो भी एकाध टीवी सेट्स होते थे वो चौक-चौराहे की शोभा बढाते थे। इस बहाने लोगों का मिलना भी हो जाता था। पटाखों वालों की तो मौज होती थी। हो भी क्यूं ना, कम्मेंट्री जो इनकी भाषा में होती थी।चौके के लिए अलग आवाज़ का पटाखा, छक्के का थोड़ा तेज़ और विकेट गिरने पे रॉकेट का गिनगिनाना। गली चौराहे पे जब आदमियों की इतनी भीड़ हो तो भला कुत्ते कहाँ चुप बैठने वाले, वो भी भौंकते रहते थे। और, कभी कभी तो कुत्तों में लड़ाई भी हो जाती थी। पर ऐसा तो कुछ भी नहीं दिखा मुझे। शायद लोगों के पास अब इतना वक़्त नहीं है कि दूसरों की पसंद-नापसंद जानें, या फिर गैजेट्स वगैरह इतनी प्रचुर संख्या में लोगों के पास उपलब्ध है कि सबको एक साथ सड़क चौराहे पे इकठ्ठा कर दें तो आदमी कम और सामान ज़्यादा हो जायेंगे, झूठमूठ की परेशानी हो जाएगी। और तो और, सब इतने महंगे दामों में खरीदे गयें हैं कि उनका इस्तेमाल करना भी ज़रूरी है-पैसा है वक़्त नहीं-इसलिए जो भी वक़्त मिलता है आदमी पैसे से खरीदी हुई चीज़ों पे बिताना पसंद करता है। या फिर यह भी हो सकता है कि लोग अब पहले के अपेक्छा ज़्यादा लिबरल और टॉलरेंट हो गयें हैं? और, इन सब मामलों में ज़्यादा प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करना चाहते हैं। लोग ज़्यादा देशभक्त हो गयें हों, यह भी एक संभव कारण हो सकता है या फिर लोग अब क्रिकेट को देशभक्ति से ज़्यादा जोड़ते हों? हो यह भी सकता है कि कुछ लोग डर रहें हों, दूसरों की भावना का ख़्याल कर रहें हों, अपने दिल की बात जुबां पे नहीं ला पा रहें हों?
सवाल ही सवाल थे। मैं इसी मानसिक उधेड़बून में उलझा हुआ अपनी क्लास में दाखिल हुआ। वहां मैच की ही चर्चा हो रही थी। समीर मुझे आता देख बोला "और, कल तो तुम बहूत खुश हो गए होगे। " अपने आप ही मेरी सवालों की गठरी से एक सवाल निकल गया "क्यूं?" "जीत गयी तुम लोगो की टीम "-समीर ने जवाब दिया। अमर और विजय ने समीर की इस टिपण्णी पे खिंचाई कर दी। मैं कुछ नहीं बोला और पानी पीने बाहर निकल गया। रास्ते में मेरा दूसरा सहपाठी समिर मिला। मुझे कोने में लेते हुए बोला-"भाई कल मैच देखा?" मैने हामी भरी। "मज़ा आ गया भाई, मल्लिक भाई ने मचा दिया । "
मैं फिर चुप रहा, क्या बोलता मैं?
No comments:
Post a Comment