Thursday, April 13, 2017

मंज़िल की तड़प

मंज़िल की तड़प पहुँचने से पहले न हो,
रस्ते तुम्हें इतने हसीं मिलें। 

कामयाबी बिठा दे आसमाँ पे गर,
ख़्याल रखना पैरों तले ज़मीं मिले। 

ग़म मुन्तज़िर होते हैं ख़ुशीयों के,
हँसों दिल से गर आँखों  में नमी मिले। 

ढूंढो ख़ुदा को इस क़दर,
वो तुम्हें ढूँढता कहीं मिले। 

हरा - भरा 'शजर' भी लगता है वीराँ,
गर उसपे परिंदों के घोंसले नहीं मिलें। 

                                                     - ताबिश नवाज़ 'शजर'

[मुन्तज़िर = One who waits]
 


Saturday, April 8, 2017

आज मेरी बारी थी

लफ़्ज़ हल्के हैं
ज़ुबाँ भारी है
आज मेरी बारी थी
कल तुम्हारी है।

वक़्त ठहरा है
घड़ी चलती है
ज़िंदगी थमी है
उम्र जारी है।

आँसू छलके हैं
हँसी थरथरायी है
दिल खोल पाना
कितना भारी है।

चुप हो, तो मरे हो
बोलो, तो मरोगे
बोल के मरो, मौत से पहले
मरना एक बीमारी है।