आज घर जाने का जी नहीं करता
उनसे नज़रें मिलाने का जी नहीं करता
अपनी परछाईं से देखा है उन्हे कांपते हुए
वहाँ चिराग़ जलाने का जी नहीं करता।
कहीं आसपास चोरी हुयी है
इल्ज़ाम मेरे वजूद पे आया है
मासूमियत का यक़ीन दिलाने का जी नहीं करता
सज़ा जो मुक़र्रर होगी उसे मान लेंगे
अब फ़रियाद लगाने का जी नहीं करता।
पहचान मेरी, मेरा वजूद
मेरे साथ जायेगा
तुम्हारे पास उसे छोड़ के जाने का जी नहीं करता।
अच्छा हुआ बात सामने आ गयी
रोज़-रोज़ बात बनाने का जी नहीं करता।
काम करने के बाद
आज लौटूंगा नहीं, भटका करूंगा
अपने ही शहर में, बंजारों की तरह
अब कोई और घर बनाने का जी नहीं करता।
आज घर जाने का जी नहीं करता।
उनसे नज़रें मिलाने का जी नहीं करता
अपनी परछाईं से देखा है उन्हे कांपते हुए
वहाँ चिराग़ जलाने का जी नहीं करता।
कहीं आसपास चोरी हुयी है
इल्ज़ाम मेरे वजूद पे आया है
मासूमियत का यक़ीन दिलाने का जी नहीं करता
सज़ा जो मुक़र्रर होगी उसे मान लेंगे
अब फ़रियाद लगाने का जी नहीं करता।
पहचान मेरी, मेरा वजूद
मेरे साथ जायेगा
तुम्हारे पास उसे छोड़ के जाने का जी नहीं करता।
अच्छा हुआ बात सामने आ गयी
रोज़-रोज़ बात बनाने का जी नहीं करता।
काम करने के बाद
आज लौटूंगा नहीं, भटका करूंगा
अपने ही शहर में, बंजारों की तरह
अब कोई और घर बनाने का जी नहीं करता।
आज घर जाने का जी नहीं करता।
A few rabble rousers cannot dictate the terms of engagement between our people but definitely they cause anxiety among us all. The anxiety increase manifold when the state seems to be lending a helping hand to such reactionary elements with the masses becoming their handmaidens. Rest assured the common goodness and spirit of togetherness will prevail upon all such souls whose only purpose is to perpetuate a monochrome version of their idea of nationhood.
ReplyDeleteYes I believe in your reassuring words. Thanks :)
DeleteBahut khoob. aisa lag raha hai mano jam chuki bhawnayein pighal kar dheere dheere bah rahi ho!!
ReplyDeleteThanks Bhai for your keen observation :)
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