मंज़िल की तड़प पहुँचने से पहले न हो,
रस्ते तुम्हें इतने हसीं मिलें।
कामयाबी बिठा दे आसमाँ पे गर,
ख़्याल रखना पैरों तले ज़मीं मिले।
ग़म मुन्तज़िर होते हैं ख़ुशीयों के,
हँसों दिल से गर आँखों में नमी मिले।
ढूंढो ख़ुदा को इस क़दर,
वो तुम्हें ढूँढता कहीं मिले।
हरा - भरा 'शजर' भी लगता है वीराँ,
गर उसपे परिंदों के घोंसले नहीं मिलें।
- ताबिश नवाज़ 'शजर'
[मुन्तज़िर = One who waits]
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