बूँद-बूँद आसमान में
पसरती रात
शबाब पर चढ़ती रात।
अँधेरे की चादर ओढ़े
जड़ कर उसमें चाँद-सितारे
आसमान का चेहरा ढकती रात।
तारों के हाथों में
थमाकर रौशनी
ज़र्रा-ज़र्रा पिघलती रात।
स्याही बनकर,
लफ़्ज़ बनकर
कोरे काग़ज़ पे चलती रात।
शाँत, गहरी
बूढ़ी-बूढ़ी सी
सुबह को तरसती रात।
सूरज की आहट पे,
चिड़ियों की चहचहाहट पे,
आसमान के चेहरे से आँचल सी सरकती रात।
बूँद-बूँद बिखरती रात
पसरती रात
शबाब पर चढ़ती रात।
अँधेरे की चादर ओढ़े
जड़ कर उसमें चाँद-सितारे
आसमान का चेहरा ढकती रात।
तारों के हाथों में
थमाकर रौशनी
ज़र्रा-ज़र्रा पिघलती रात।
स्याही बनकर,
लफ़्ज़ बनकर
कोरे काग़ज़ पे चलती रात।
शाँत, गहरी
बूढ़ी-बूढ़ी सी
सुबह को तरसती रात।
सूरज की आहट पे,
चिड़ियों की चहचहाहट पे,
आसमान के चेहरे से आँचल सी सरकती रात।
बूँद-बूँद बिखरती रात
No comments:
Post a Comment