Wednesday, January 2, 2019

रात

बूँद-बूँद आसमान में
पसरती रात
शबाब पर चढ़ती रात।

अँधेरे  की चादर ओढ़े
जड़ कर उसमें चाँद-सितारे
आसमान का चेहरा ढकती रात।

तारों के हाथों में
थमाकर रौशनी
ज़र्रा-ज़र्रा पिघलती रात।

स्याही बनकर,
लफ़्ज़ बनकर
कोरे काग़ज़ पे चलती रात।

शाँत, गहरी
बूढ़ी-बूढ़ी सी
सुबह को तरसती रात।

सूरज की आहट पे,
चिड़ियों की चहचहाहट पे,
आसमान के चेहरे से आँचल सी सरकती रात।

बूँद-बूँद बिखरती रात




No comments:

Post a Comment