एक रास्ता
जिसपे मैं पहली बार चलूँगा
कुछ रास्ते ऐसे भी
जिनपे मैं शायद
आख़री दफ़े चल आया हूँ।
क्या नए रास्ते पे चाल
कुछ बदल जाएगी
या पुराने रास्ते जिनपे
मैं गर दोबारा चलूँ
बदली चाल से नया होगा ?
क्या मैं उन रास्तों को
जिनपे मैं चल आया हूँ
अपनी चाल, अपने क़दम में
सदा संभाल न रखूँगा ?
वो मेरे क़दमों तले
बिछते न जायेंगें?
फिर क्या कुछ नया
क्या पुराना होगा?
रास्ते मेरे जूते में क़ैद हैं
मैं क़दम बढ़ाऊँगा
वो रिहा होते जाएंगे
छितरने लगेंगे
पैरों के इर्द-गिर्द
मानों ज़मीन से फूटे
चश्में पे मैं खड़ा हूँ।
फिर मैं चलते जाऊँगा
क़दम रास्ते बुनते जायेंगे
नए-पुराने ऐसे सम्मलित होंगे जैसे
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