Friday, September 27, 2019

बम्बई

विरोधाभास का शहर
दबे एहसास का शहर
समन्दर में बसा हुआ
सपनों में फँसा हुआ
बेचैन, बदहवास सा शहर।

कहीं किलकारियों से खनकता हुआ
कहीं सिसकियों से छनकता हुआ
सैकड़ों तमन्नाओं को संजो कर
मुस्कुराता निराश सा शहर।

मंटो का शहर
ग़ुलज़ार का शहर
साहिर के टूटे मज़ार का शहर
कहीं जाने की चाह में
खड़ा करता इंतज़ार सा शहर।

ज़मीं में बिखरे सितारों का शहर
टैक्सी पे लिखे नारों का शहर
नींद में चलता हुआ
चॉल में खड़े क़तारों का शहर।

यह शहर अब मुझमें बसने लगा है
शब्द बन ज़ेहन में पनपने लगा है
देखता हूँ जब भी, दिल में उतर आता है
यह ख़ाली ज़मीन पे घर बनाने का हुनर जानता है।
                                                          - ताबिश नवाज़ 'शजर'

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