Saturday, July 6, 2019

एक ग़ज़ल

दर्द को जो ज़बाँ मिले
इस वजूद को नामो - निशाँ मिले

जिन बातों में चमकती हो उदासी
उस चमक से रौशन जहाँ मिले

और जब आँहों से उठने लगे सदा सी
उन सदाओं को ग़ज़ल से बयाँ मिले

तर तन्हा करते हैं जो दिल की सुर्ख़ मिट्टी
उनके आँसुओं को तर आँखों का मकाँ मिले

तमन्ना नहीं कि सुख़नवर कहलाऊँ
लिख लेता हूँ 'शजर' जो दो वक़्त तन्हा मिले

                           - ताबिश नवाज़ 'शजर' 

1 comment:

  1. सुख़नवर है ही कौन इस जहां में
    बस बात दिल को छूनी चाहिए।

    ReplyDelete