Saturday, June 30, 2018

आज

बेनूर     आज        शहर        लगता     है
चाँद     आज      दर-ब-दर     लगता    है

शमा      अँधेरे        में         लिपटी      है
चिराग़    आज      बेअसर     लगता     है

सीने   की   आग   आँखों   में   जलती   है
दो बूँद पानी आज उनमें समंदर लगता है

मय   में   मिला    दी      ज़िन्दगी    उसने
कितना   मीठा   ये   आज ज़हर लगता है

बैठे  हैं  काटकर   तुझे,  तेरे  ही  साये  में
कितना  मासूम  तू आज 'शजर' लगता है


[दर-ब-दर = Displaced, Wandering; मय = Intoxicant; शजर = Tree]


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