कुछ यादें जिन्हें मैं जी नहीं पाता
वो सपने बनकर
मेरी नींद में आते
मैं दो समय के बीच खड़ा
चाहत और भय से जड़ा
भूलने लगता हूँ अपने दोस्त-परिजन
भाग जाता हूँ छोड़ अपना शहर
जहाँ पहुँचा कर मैं बरसो सफ़र
जो फिर छूट गया हवा में
समय की सतह से
सटकर, सख़्त हो गया
जैसे दीवार पे जमीं फफूँदी
पेड़ों पे काई
समय किसी शहर में
निरंतरता में विराम
तुम्हारी बातों में हिचकियाँ
आकाश में चिड़ियों का झुंड
कोरे काग़ज़ पे स्याही के धब्बे
वक़्त गड़रिया है, हम भेड़
वो हाँकता हमें
यादों की छड़ी लिए
हम चरते जाते
चरते जाते
अपनी ज़िन्दगी
वो सपने बनकर
मेरी नींद में आते
मैं दो समय के बीच खड़ा
चाहत और भय से जड़ा
भूलने लगता हूँ अपने दोस्त-परिजन
भाग जाता हूँ छोड़ अपना शहर
जहाँ पहुँचा कर मैं बरसो सफ़र
जो फिर छूट गया हवा में
समय की सतह से
सटकर, सख़्त हो गया
जैसे दीवार पे जमीं फफूँदी
पेड़ों पे काई
समय किसी शहर में
निरंतरता में विराम
तुम्हारी बातों में हिचकियाँ
आकाश में चिड़ियों का झुंड
कोरे काग़ज़ पे स्याही के धब्बे
वक़्त गड़रिया है, हम भेड़
वो हाँकता हमें
यादों की छड़ी लिए
हम चरते जाते
चरते जाते
अपनी ज़िन्दगी
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