Sunday, February 24, 2019

ख़ून झलकता है जहाँ आँखों में
वहाँ नज़र साफ़ नहीं होती

इंसाफ़ जहाँ क़ीमती हो
वहाँ बरसात नहीं होती

पानी तो बरसता है, लोग मिलते भी हैं
पर मुलाक़ात नहीं होती

रौशनी से रौशनी मिल जाये तो क्या
अँधेरे की वफ़ात नहीं होती

बुझा दो आज चराग़ों को
अब वहाँ तेरी बात नहीं होती

जम जाओ मेरे लफ़्ज़ों
तुमसे अब वो बात नहीं होती

तुम पथ्थर बन जाओ, बरस पड़ो ज़माने पे
जहाँ रिश्तों में जज़्बात नहीं होते

'शजर' तु आज हँसता भी है और रोता भी, कुछ तो है,
वर्ना यह कैफ़ियत एक साथ नहीं होती

                                           - ताबिश नवाज़ 'शजर'

[वफ़ात = मौत; कैफ़ियत = हालत]

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