Tuesday, March 19, 2019

चाँद

चाँद सर-ए-आसमाँ जलता रहा
हमसफ़र बना, साथ चलता रहा

क़िस्से-कहानियाँ हमें सुनाता गया
स्याह रात में रौशनी, माथे पे मलता रहा

हम भी टकटकी लगाए उसे देखा किये
चाँद भी हमें रात भर तकता रहा

रास्ते पे चलते जब ठोकर लगी
उसे देखकर क़दम संभलता रहा

मंज़िल थी क्या, बस एक 'शजर' की छाँव
जिसकी शाख़ें हिलती रहीं, चाँद जिनमें मचलता रहा 



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