हर ज़बाँ को कान का सहारा मिले
कोई दोस्त मिले, कोई प्यारा मिले
हँसने में जो रो लेते हैं
दर्द बयाँ करने का उन्हे कुछ ईशारा मिले
नन्हे सपने समंदर में जब डूबते हों
कम-से-कम पानी न उन्हें खारा मिले
सरगोशी शोर बन जाये
ऐसा एक स्वर हमारा मिले
ज़ुल्म मिट जाये जहाँ से
उसके ख़िलाफ़ एक ऐसा नारा मिले
नफ़रत बाँट न सके
हमें मोहब्बत से जोड़ती एक ऐसी धारा मिले
क़ैद न रह जाएं महज़ काग़ज़ों में
कविताओं को चौक-चौराहों पे ग़ुज़ारा मिले
------------------------------ताबिश नवाज़
कोई दोस्त मिले, कोई प्यारा मिले
हँसने में जो रो लेते हैं
दर्द बयाँ करने का उन्हे कुछ ईशारा मिले
नन्हे सपने समंदर में जब डूबते हों
कम-से-कम पानी न उन्हें खारा मिले
सरगोशी शोर बन जाये
ऐसा एक स्वर हमारा मिले
ज़ुल्म मिट जाये जहाँ से
उसके ख़िलाफ़ एक ऐसा नारा मिले
नफ़रत बाँट न सके
हमें मोहब्बत से जोड़ती एक ऐसी धारा मिले
क़ैद न रह जाएं महज़ काग़ज़ों में
कविताओं को चौक-चौराहों पे ग़ुज़ारा मिले
------------------------------ताबिश नवाज़
Awsome poem
ReplyDeleteThank you Akif
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